भारतीय संस्कृति में राम और श्याम—अर्थात श्रीराम और श्रीकृष्ण—के रूप केवल धार्मिक आस्था तक सीमित नहीं हैं। वे भारतीय जीवन दृष्टि के दो ऐसे शाश्वत आयाम हैं जो जीवन को मर्यादा और माधुर्य, त्याग और प्रेम, अनुशासन और आनंद से संतुलित करते हैं। ये दोनों स्वरूप भारतीय मानस के दो स्तंभ हैं, जिनकी उपस्थिति हर युग में समाज और व्यक्ति के भीतर संतुलन स्थापित करती रही है।
श्रीराम मर्यादा के मूर्तिमान स्वरूप हैं। वे केवल एक ऐतिहासिक राजा नहीं, बल्कि नैतिक आदर्शों का ऐसा चरित्र हैं, जिनके निर्णय आज भी लोककल्याण के उच्च मानदंड माने जाते हैं। उनका संयम, त्याग, धर्म के प्रति समर्पण, और अपने निजी सुखों की बलि देकर समाज के लिए खड़ा होना उन्हें भारतीय विचारधारा में केंद्रीय स्थान देता है। राम का जीवन यह सिखाता है कि नेतृत्व का मूल उद्देश्य जनहित होता है, न कि व्यक्तिगत सुख।
इसके विपरीत श्रीकृष्ण का स्वरूप अधिक समावेशी, लचीला और जीवन के विविध रंगों से युक्त है। वे बाल लीलाओं में आनंद, यौवन में रास, और कुरुक्षेत्र में गीता के उपदेश द्वारा कर्मयोग का सजीव उदाहरण हैं। कृष्ण केवल प्रेम और रास के देवता नहीं, बल्कि कूटनीति, नीति, और आध्यात्मिक ज्ञान के भी प्रतीक हैं। उनका जीवन हमें बताता है कि केवल नियमों से नहीं, भावों और विवेक से भी जीवन को सफल बनाया जा सकता है।
राम और श्याम की उपस्थिति, एक साथ, भारतीय जीवन की पूर्णता का संकेत हैं। जहाँ राम मर्यादा की रीढ़ हैं, वहीं कृष्ण रस और सौंदर्य के स्पंदन हैं। राम स्थिरता प्रदान करते हैं, कृष्ण चेतना को लय और गहराई। दोनों का संतुलन ही जीवन को अर्थपूर्ण और संतुलित बनाता है।
भारत के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने भी राम की इसी व्यापकता को रेखांकित करते हुए कहा था कि "राम भारत की आस्था हैं, राम भारत का आधार हैं, राम भारत का विचार हैं, राम भारत का विधान हैं, राम भारत की चेतना हैं, राम भारत का चिंतन है, राम भारत की प्रतिष्ठा है।" उन्होंने राम मंदिर को भारत की दृष्टि, दर्शन और राष्ट्र चेतना का मंदिर बताया — यह केवल ईंटों और पत्थरों का ढांचा नहीं, बल्कि भारत की आत्मा का प्रतीक है।
आज, जब समाज भोगवाद, उपभोग और व्यक्तिगत स्वार्थ की ओर झुकता दिखाई देता है, तब राम की मर्यादा और कृष्ण की करुणा पहले से कहीं अधिक प्रासंगिक हो गई है। जीवन में संतुलन, अनुशासन और स्नेह की आवश्यकता है। केवल आध्यात्मिकता या केवल आनंद से समाज नहीं बनता—इन दोनों की गूँज जब एक साथ होती है, तभी एक समग्र जीवन दृष्टि विकसित होती है।
इसलिए, चाहे युग कोई भी हो, परिस्थितियाँ कैसी भी हों—राम और श्याम भारतीय मानस में युगों तक बने रहेंगे। एक जीवन को दिशा देता है, दूसरा उसमें रंग भरता है। यही भारत की वास्तविक सांस्कृतिक और आध्यात्मिक पहचान है।
अंकित राठौड़
Created On: June 12, 2025