वसीयत के बजाय वरासत का आदेश बना चर्चा का विषय
पहले वसीयत के गवाहों पर दबाव बनाने के लिए भतीजों ने दर्ज कराया था जालसाजी का मुकदमा
तहसीलदार न्यायालय ने पंजीकृत वसीयत के आधार पर दिया गया प्रार्थना पत्र कर दिया निरस्त
पुनीत संदेश/संदीप कुमार मिश्र
पाटन उन्नाव।बीघापुर तहसीलदार न्यायालय द्वारा एक सप्ताह पूर्व किया गया एक निर्णय इस समय पूरी तहसील में चर्चा का विषय बना हुआ है। इसमें करोड़ों कीमत की करीब 26 बीघा भूमि की पंजीकृत वसीयत के आधार पर नामांतरण प्रार्थना पत्र को निरस्त कर वरासत का आदेश दिया गया है। संबंधित लेखपाल व राजस्व निरीक्षक समेत प्रशासनिक अधिकारियों पर मिलीभगत का आरोप लग रहा है। तहसीलदार ने इसे बहस व साक्ष्य के आधार पर दिया गया निर्णय बताया है।
मामला तहसील क्षेत्र के पाल्हेपुर व ऊंचगांव में करीब 26 बीघा बेशकीमती भूमि का है। पाल्हेपुर निवासी शिशिर त्रिवेदी ने बताया कि अश्वनी कुमार उर्फ अश्वनी कुमार त्रिवेदी व पत्नी शशिबाला को कोई औलाद नहीं थी। वर्ष 1985 में पिता संतोष त्रिवेदी का देहांत हो जाने के बाद चचेरे चाचा अश्वनी कुमार त्रिवेदी ने ही उनका व बहन का पालन पोषण किया था और अभिभावक की जिम्मेदारी निभाई थी। शिशिर ने बताया कि 16 जून 2020 को पत्नी शशिबाला की मृत्यु हो जाने के बाद सेवा से प्रभावित होकर अश्वनी ने अपनी सम्पूर्ण चल व अचल संपत्ति की पंजीकृत वसीयत 05 नवंबर 2020 को पत्नी अनीता व पुत्र प्रशांत के नाम कर दी थी। 15 दिसंबर 2020 को अश्वनी की मौत हो गई तो 17 दिसंबर को उन्होंने वसीयत का दाखिल खारिज करने के लिए तहसील में प्रार्थना पत्र दिया था। शिशिर के अनुसार बैंक खाते में मोटी रकम जमा होने और पाल्हेपुर व ऊँचगांव में करीब 26 बीघा बेशकीमती भूमि
होने के कारण अश्वनी कुमार के सगे भतीजे आनंद कुमार व नंद कुमार ने आपत्ति लगाकर समय मांगा और वसीयत के गवाहों को दबाव में लेने के लिए उनके विरुद्ध जालसाजी का मुकदमा दर्ज करवा दिया था। इस प्रकरण को चार वर्ष बाद 21 फरवरी को तहसीलदार न्यायालय से पंजीकृत वसीयत के आधार पर दिए गए नामांतरण प्रार्थना पत्र को निरस्त करते हुए वरासत को मान्यता देते हुए मृतक अश्विनी कुमार के भतीजों के पक्ष में निष्पादित कर दिया गया। करीब चार वर्ष तक चर्चा में रहा यह मामला निष्पादित होने के बाद पूरी तहसील में चर्चा का केंद्र बिंदु बना हुआ है। अधिकांश अधिवक्ताओं का कहना है कि बेशकीमती 26 बीघा भूमि के संबंध में दोनों गवाहों के जीवित रहते हुए पंजीकृत वसीयत को अनदेखा कर वरासत का आदेश दिया जाना संदेहास्पद है। इस तरह के निर्णय से पंजीकृत वसीयत की पूरी प्रक्रिया भी अविश्वास के घेरे में आ रही है। तहसीलदार अरसला नाज ने बताया कि कोई भी मुकदमा बहस व साक्ष्यों के आधार पर निष्पादित किया जाता है। असंतुष्ट होने पर अपील का अधिकार वादी व प्रतिवादी के पास सुरक्षित रहता है।
Created On: March 01, 2025